🌹 अष्टावक्र गीता - प्रथम अध्याय - आत्मानुभवोपदेश - श्लोक 9 - अज्ञान के जंगल को "मैं शुद्ध चैतन्य हूं" की ज्ञानाग्नि से जलाकर मुक्त होकर जीवन जियो। 🌹
🍀 4. चेतना ही ज्ञान का स्रोत है 🍀
✍️ प्रसाद भारद्वाज
https://www.youtube.com/shorts/zkBJrI6PPpA
इस वीडियो में, हम अष्टावक्र गीता के पहले अध्याय के 9वें श्लोक का विश्लेषण करते हैं, जो आत्मज्ञान का सार सिखाता है। "मैं शुद्ध चैतन्य हूं" की ज्ञानाग्नि से अज्ञान रूपी जंगल को जलाकर, मन को शुद्ध कर, मानसिक पीड़ा को पार करते हुए, कैसे मुक्त और दुखरहित जीवन जिया जा सकता है, यह जानें। इस ज्ञान की अग्नि – "मैं शुद्ध चेतना हूँ" की जागरूकता – अज्ञान के विशाल वन को जला देती है। यह अज्ञान को जलाना कोई भौतिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह आत्मज्ञान में एक पूर्ण आध्यात्मिक परिवर्तन है, जिसमें अहंकार, आसक्ति और इच्छाओं की सीमाएं आत्मसाक्षात्कार की ज्योति में विलीन हो जाती हैं।. प्रसाद भारद्वाज.
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