✍️ प्रसाद भारद्वाज
https://youtu.be/914Ghemtpqo
इस वीडियो में अष्टावक्र गीता के पहले अध्याय के पांचवें श्लोक को प्रसाद भरद्वाज द्वारा गहराई से समझाया गया है। अष्टावक्र महर्षि आत्मा के वास्तविक स्वरूप का वर्णन करते हैं, जो किसी भी सामाजिक विभाजन, रूप, और इंद्रियों की सीमाओं से परे है। वे हमें बताते हैं कि हमें निर्लिप्त, निराकार, और विश्व के साक्षी के रूप में रहना चाहिए और आंतरिक आनंद के साथ जीना चाहिए। जानिए कि अपने असली स्वरूप को पहचानकर कैसे जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाई जा सकती है, जो मोक्ष की ओर ले जाती है।
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